उपवास शब्द दो शब्दों से बना है - उप यानि नजदीक और वास यानि निवास करना अर्थात अपनी आत्मा के करीब स्थित होना उपवास है। स्व में स्थित होने से स्वास्थ्य प्राप्त होता है ।
व्रत उपवास हमारी संस्कृति के एक अभिन्न अंग है। इनका सिर्फ धार्मिक महत्त्व ही नहीं है बल्कि शारीरिक रूप से भी बहुत अधिक महत्त्व है। व्रत उपवास शरीर और आत्मा की शुद्धि करने के लिए होते है।
उपवास का आध्यात्मिक अर्थ बहुत सुन्दर और स्पष्ट है। स्वस्थ रहना आपका कर्तव्य भी है और धर्म भी । व्रत उपवास करने से तन और मन के विकार दूर होकर तन स्वस्थ और मन पवित्र हो जाता है।
शरीर जिन पाँच तत्वों से बना है उनमें से आकाश यानी खाली स्थान का बहुत महत्व है। व्रत या उपवास से इसी आकाश तत्व की आपूर्ति शरीर को होती है।
आयुर्वेद में उपवास - आयुर्वेद में लंघन एक विशिष्ट चिकित्सा पद्धति है, जो शरीर से विषाक्त तत्वों को कम करने और बाहर निकालने में सहायक है। उपवास इसी लंघन का एक भाग है। लंघन का शाब्दिक अर्थ है शरीर में हल्कापन लाना। उपवास के लिए रोग और व्यक्ति की अवस्था के अनुसार एक निश्चित समय के लिए किसी भी प्रकार के भोजन का त्याग करना होता है। आयुर्वेद में कई प्रकार के रोगों में उपवास की उपयोगिता का उल्लेख किया गया है, जैसे - बुखार या ज्वर, वमन या उल्टी आना, नेत्र संक्रमण, दस्त, त्वचा के रोग, मूत्र विकार, मोटापा, लिवर, हृदय, गला, फेफड़ों और सिर से संबंधित रोगों में उपवास का उद्देश्य शरीर में चयापचय क्रिया के दौरान उत्पन्न विषाक्त तत्व का पाचन कर अग्नि तत्व की वृद्धि करना होता है।
व्रत उपवास में शरीर शुद्ध होने की प्रक्रिया में कुछ अस्वाभाविक अनुभव हो सकते है जैसे सिर दर्द , पेट दर्द , उल्टी , मितली , चक्कर आना आदि लेकिन इनसे घबराना नही चाहिए।
उपवास के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं-
-शरीर से मल और अपान वायु का समुचित रूप से बाहर निकलना।-तरोताजा और ऊर्जावान महसूस करना।
-शरीर की सभी प्रक्रियाओं में सुधार होना।
-सुस्ती और थकान दूर होना।
-स्वाद, भूख, प्यास और नींद का संंतुलित होना।
-मन का शांत और प्रसन्नचित्त होना।
सही तरीके से उपवास करने से कई गंभीर रोग जैसे सोरायसिस , पेट की सूजन , एक्जिमा , गठिया आदि भी ठीक हो सकते है ।
उपवास भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना ही नहीं सिखाता, बल्कि शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और पाचन तंत्र को आराम देने में भी मदद करता है।
विज्ञान मानता है कि हमारे स्वास्थ्य के साथ मन को प्रसन्न व शांत रखने में इन उपवासों का योगदान रहा है। उपवास के दौरान विषैले तत्वों का जमाव होना बंद हो जाता है और शरीर में पहले से जमा विषैले तत्व तेजी से बाहर निकलने लगते हैं। यही शरीर का डिटॉक्सीफिकेशन कहलाता है। इससे शरीर चुस्त-दुरुस्त और हल्का लगने लगता है।
कैसे-कैसे उपवास - निराहार, फलाहार या मितहार रह कर नवरात्र का व्रत रखने की परंपरा हिंदू समाज में रही है।
निराहार में केवल पानी और एक जोड़ा लौंग का प्रावधान है।
फलाहार के तहत एक समय फलाहारी वस्तुओं को अपने भोजन में शामिल किया जा सकता है
मितहारी में शुद्ध और शाकाहारी भोजन एक ही समय करने का विधान है।
व्रत उपवास में क्या खाना चाहिए जैसे फल उपवास , रस उपवास और आंशिक उपवास , पूर्ण उपवास ।
फल उपवास में हर तीन घंटे से कोई भी एक फल खा सकते है। जैसे अनार , चीकू , सेब , अमरूद , केला , अंगूर आदि जो भी पसंद हो ले सकते है।
रस उपवास में तीन घंटे के अंतर से किसी फल या किसी सब्जी का रस ले सकते है । बील का जूस , लोकी का जूस , शिकंजी , गाजर का जूस , पालक का जूस आदि ले सकते है।
आंशिक उपवास में ढाई घंटे के अंतर से एक गिलास पानी में एक चम्मच शहद व एक नींबू का रस लेना चाहिए।
पूर्ण उपवास में हर डेढ़ घंटे से सिर्फ एक गिलास पानी लें । उपवास में पानी खूब पीना चाहिए। क्योंकि शरीर पानी की मदद से ही हर प्रकार के विकारों को दूर करता है।
क्या खाएं उपवास में - अधिक मात्रा में ले सकें, पेय पदार्थ लें। इनमें पानी, जूस, मट्ठा, लस्सी, नारियल पानी, नीबू पानी के साथ दूध आदि भी है। ये जादू की तरह काम करेंगे। अपको ऊर्जा तो देंगे ही, शरीर में खून के बहाव को भी सही रखेंगे। पाचन तंत्र को सामान्य रखने में भी मदद करेंगे। शरीर के टॉक्सिन बाहर निकालना इसी तरीके से संभव है। ज्यादा पेय लेने से गुर्दे अपना काम बेहतर ढंग से करते हैं और शरीर के बैक्टीरिया को बाहर निकालने का काम भी करते हैं। तरल की सही मात्रा शरीर को हल्का तो रखेगी ही, आवश्यक मिनरल्स व विटामिंस के जरिए ऊर्जा भी देती रहेगी, जिससे आप थकावट व आलस भी महसूस नहीं करेंगे। पेट भरा लगेगा, सो अलग। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि उपवास में खाने के बीच लंबा अंतराल न रहे।
साबुदाना - गजब ताकत है इन नन्हें मोती जैसे दानों में, तभी तो बच्चे हों या बड़े, सभी को खाने की सलाह दी जाती है। यहां तक कि बीमार व्यक्ति भी इसे आसानी से पचा सकता है। कार्बोहाइड्रेट से भरपूर साबुदाना तुरंत ऊर्जा देने में सक्षम है।
दही - शरीर को ठंडा रखने की शक्ति है दही में। दही का सेवन आप लस्सी, मट्ठा या छाछ के रूप में आसानी से कर सकते हैं। इसके सेवन से आप तरो-ताजा और ऊर्जावान महसूस करेंगे।
सेंधा नमक - यह आम नमक की तुलना में ज्यादा फायदेमंद इसलिए है, क्योंकि पोटैशियम से भरपूर है। यह गैस से मुक्ति दिलाता है, आसानी से खाना पचाता है व छाती में जलन नहीं होने देता।
फलों की चाट - बीच-बीच में खाने के लिए फलों की चाट फायदेमंद है। फलों में हेल्दी शुगर फ्रुक्टोज के साथ मेटाबॉलिज्म को तेज करने की भी क्षमता होती है। इसलिए जी भर कर फल खाएं।
दुग्ध उत्पाद - दूध व दूध से बनी चीजें उपवास में विशेष रूप से खाने की सलाह दी जाती है। पनीर भला किसे पसंद न होगा! अगर पसंद न हो तो भी खाइए, क्योंकि यह कैल्शियम से भरपूर आसानी से पचने वाला हल्का खाद्य पदार्थ होता है।
उपवास में शामिल करें - इस दौरान विशेष तौर पर कुछ चीजों का सेवन करना चाहिए। चिरौजी की दाल, अरबी की कढ़ी, लौकी व मेवों की खीर, सीताफल का हलवा आदि का आनंद आप इन्हीं दिनों उठा सकते हैं।
भूखे तो बिल्कुल न रहें एक बात अच्छी तरह याद रखें कि बिलकुल भूखे न रहें। इससे फायदे के बजाय आपकी तकलीफें व समस्याएं बढेंगी। संतुलित डाइट का ध्यान रखें।
तला-भुना खाने से बचें - हम जानते हैं कि कभी-कभी तला खाने से मन को रोकना कठिन होता है, लेकिन अच्छा होगा कि आप इसकी जगह भुना, भाप में पकाया या ग्रिल या ब्रेक किया खाना खा कर मन को मनाएं।
व्रत उपवास खोलने का तरीका
व्रत उपवास तोड़ने का भी एक तरीका होता है। उपवास ठोस आहार से समाप्त नहीं करना चाहिए। पहले फ्रूट जूस लें। फिर उबली सब्जी और अंत में रोटी या दलिया लेना चाहिये। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए सप्ताह में एक बार व्रत या उपवास जरुर करना चाहिए।
व्रत उपवास किसे नहीं करना चाहिए
कमजोर और अशक्त लोगों को उपवास नहीं करना चाहिए। इसके अलावा बच्चों , बुजुर्गों और गर्भवती स्त्री को उपवास नहीं करना चाहिए। रक्तचाप, अल्सर, डाइबिटीज एनीमिया व दिल के रोगियों को उपवास नहीं करने की सलाह डॉक्टर देते हैं। ज्यादा कैलोरी लेने के कारण गर्भवती स्त्रियों और बढ़ती उम्र के बच्चों को व्रत न रखने की सलाह दी जाती है।
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